Sunday, March 23, 2014

वीर छत्रपति शिवाजी

भारतभूमि हमेशा ही वीरों की जननी रही है. यहां समय-समय पर ऐसे वीर हुए जिनकी वीर गाथा सुन हर भारतवासी का सीना गर्व से तन जाता है. भारतभूमि के महान वीरों में एक नाम वीर छत्रपति शिवाजी का भी आता है जिन्होंने अपने पराक्रम से औरंगजेब जैसे महान मुगल शासक की सेना को भी परास्त कर दिया था. एक महान, साहसी और चतुर हिंदू शासक के रूप में छत्रपति शिवाजी को यह जग हमेशा याद करेगा.

कम साधन होने के बाद भी छत्रपति शिवाजी ने अपनी सेना को एक संयोजित ढंग से रण में माहिर बनाया. अपनी बहादुरी, साहस एवं चतुरता से उन्‍होंने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की विशाल सेना से कई बार जोरदार टक्कर ली और अपनी शक्ति को बढ़ाया. छत्रपति शिवाजी कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे. वे कई लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्‍हें पुन हिन्‍दू धर्म में लाए. छत्रपति शिवाजी बहुत ही चरित्रवान व्‍यक्ति थे. वे महिलाओं का बहुत आदर करते थे. महिलाओं के साथ दुर्व्‍यवहार करने वालों और निर्दोष व्‍यक्तियों की हत्‍या करने वालों को कड़ा दंड देते थे.

छत्रपति शिवाजी की अभूतपूर्व सफलता का रहस्य मात्र उनकी वीरता एवं शौर्य में निहित नहीं है, अपितु उनकी आध्यात्मिकता का भी उनकी उपलब्धियों में बहुत बडा योगदान है. उल्लेखनीय है कि मराठा सरदार से छत्रपति बनने के मार्ग में बहुत सारी बाधाएं आईं किंतु उन सबका उन्मूलन करते हुए वह अपने लक्ष्य पर पहुंच कर ही रहे.

Shivajiऔरंगजेब भी था शिवाजी के आगे फेल
मुगल बादशाह औरंगजेब अपनी विराट शाही सेना के बावजूद उनका बाल बांका भी नहीं कर सका और उसके एक बडे भूभाग पर उन्होंने अधिकार प्राप्त कर लिया. छल से उन्हें और उनके किशोर लडके को आगरे में कैद करने में औरंगजेब ने सफलता प्राप्त की, तो शिवाजी अपनी बुद्धिमता और अपनी इष्ट देवी तुलजा भवानी की कृपा के बल पर बंधन मुक्त होने में सफल हो गए. असहाय जनता के लिए शिवाजी पहले-पहल एक समर्थ रक्षक बनकर उभरे. छत्रपति निस्संदेह भारत-माता के प्रथम सुपुत्र सिद्ध हुए, जिन्होंने देशवासियों के अंदर नवीन उत्साह का संचार किया.

शिवाजी यथार्थ में एक आदर्शवादी थे. उन्होंने मुगलों, बीजापुर के सुल्तान, गोवा के पुर्तग़ालियों और जंजीरा स्थित अबीसीनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल प्रतिरोध के बावजूद दक्षिण में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना की. उन्हीं के प्रयासों से भविष्य में विशाल मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई. उनके गुरू दक्षिण भारत में एक महान संत गुरु रामदास थे. शिवाजी का गुरू प्रेम भी जगप्रसिद्ध था.

शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई. आज भी देश में छत्रपति शिवाजी का नाम एक महान सेनानी और लड़ाके के रूप में लिया जाता है जिनकी रणनीति का अध्ययन आज भी लोग करते हैं.
source:jagranjunction.com/


Sunday, November 24, 2013

महाराणा प्रताप की 40 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया

हिमाचल में बनेंगे राजपूत और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने घोषणा की है कि राज्य में राजपूत कल्याण बोर्ड और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड गठित किए जाएंगे। इन दोनों बोर्डों के अध्यक्ष वह खुद होंगे। मुख्यमंत्री यहां महाराणा प्रताप परिसर में प्रदेश राजपूत कल्याण ट्रस्ट और सभा की ओर से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने महाराणा प्रताप की 40 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण भी किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि दोनों समुदाय के लोग इन बोर्डों के माध्यम से सीधे सरकार के साथ अपनी बात उठा सकेंगे। इससे पहले भी कांग्रेस सरकार ने लगभग सभी समुदायों के लिए बोर्ड बनाए हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप ने कभी विदेशी सत्ता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने तकलीफें सहीं, लेकिन अपनी आजादी को नहीं खोया।
इससे पहले कैबिनेट मंत्री सुजान सिंह पठानिया ने कहा कि खुद को सुधारने के पश्चात ही महाराणा प्रताप का सपना पूरा होगा। इस मौके पर सीएम ने कहा कि आगामी कैबिनेट बैठक में जल्द ही कौशल विकास भत्ते के लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 से 16 साल की जाएगी। इस भत्ते के लिए सरकार ने इस साल के बजट में सौ करोड़ का प्रावधान किया है।
इससे पहले राजपूत कल्याण ट्रस्ट के चेयरमैन ठाकुर कुलदीप सिंह ने भी बोर्ड बनाने की मांग रखी। राजपूत कल्याण सभा के अध्यक्ष टेक चंद राणा, कर्नल एससी परमार, कर्नल एमएस परमार, प्रो. केसी कंवर ने भी सभा को संबोधित किया। मूर्तिकार एससी परीदा को सीएम ने सम्मानित किया।

Monday, October 29, 2012

पृथ्वीराज चौहान


पृथ्वीराज चौहान, जो कि दिल्ली के चौहान राजवंश के अन्तिम शासक थे का जन्म सन् 1168 में हुआ था। उनके पिता सोमेश्वर चौहान तथा माता कर्पूरी देवी थीं। सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे तथा कर्पूरी देवी दिल्ली के राजा अनंगपाल की इकलौती पुत्री थीं। उत्तराधिकारी के अभाव में अनंगपाल ने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का राज्यभार सौंपा था। पृथ्वीराज चौहान बाल्यपन से ही कुशाग्रबुद्धि थे तथा वे अल्पायु में ही सैन्य कौशल में पारंगत हो गए थे। शब्दभेदी बाण चलाना उनकी एक विशेष योग्यता थी। माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान असीमित बल के स्वामी थे और बचपन में ही उन्होंने शेर से लड़ाई कर के उसका जबड़ा फाड़ डाला था। उन्हें एक युद्धप्रिय राजा के रूप में जाना जाता है। मात्र तेरह वर्ष की अवस्था में उन्होंने गुजरात के शक्तिशाली राजा भीमदेव को युद्ध में हरा दिया था। दिल्ली के राज्य सिंहासन पर आरूढ़ होने पर उन्होंने पिथौरागढ़ नामक किले का निर्माण करवाया था इस कारण से पृथ्वीराज चौहान को “राय पिथौरा” भी कहा जाता है।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेमकथा भी बेहद मशहूर तथा रोचक है। संयोगिता कनौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं। पृथ्वीराज और संयोगिता में आपस में प्रेम सम्बन्ध था किन्तु दोनों का विवाह होना आसान बात नहीं थी क्योंकि पृथ्वीराज और जयचंद के बीच कट्टर दुश्मनी थी। जयचंद ने राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया जिसमें पृथ्वीराज चौहान को निमन्त्रित नहीं किया गया। उल्टे पृथ्वीराज का अपमान करने के उद्देश्य से जयचंद ने दरबान के स्थान पर उनकी प्रतिमा बनवा कर लगवा दी। इस अपमान का बदला लेने के लिए वीर पृथ्वीराज चौहान ने स्वयंवर सभा से संयोगिता का हरण कर उससे विवाह कर लिया।
तराइन के प्रथम युद्ध (1191 ) में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को बुरी तरह से परास्त किया किन्तु घायल गोरी को उसका एक सैनिक बचा ले जाने में सफल हो गया। पृथ्वीराज चाहते तो गोरी की नेतृत्वविहीन भागती हुई सेना को रौंद सकते थे किन्तु राजपूत धर्म का निर्वाह करते हूए उन्होंने उन्हें भाग जाने दिया। शहाबुद्दीन गोरी ने लगभग एक साल बाद फिर से हमला किया और तराइन के इस दुसरे युद्ध (1192 ) इ. में पृथ्वीराज की पराजय हुई। कहा जाता है कि गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को उनके मित्र एवं दरबारी कवि चन्द बरदाई को धोखा देकर कैद कर लिया था। कैद करने के बाद मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की आँखों को गरम सलाखों से जला दिया था और वे दृष्टिहीन हो गए थे।
कहा जाता है कि गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने की योग्यता का प्रदर्शन का आयोजन किया था। उस आयोजन में चन्द बरदाई ने निम्न दोहा कह कर पृथ्वीराज को गोरी के बैठने के स्थान का संकेत दे दिया था -
चार बाँस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान हैं मत चूके चौहान॥
प्रदर्शन की सफलता पर गोरी के द्वारा “शाबाश” कहते ही पृथ्वीराज चौहान ने गोरी के मुख से निकले शब्दों आधार पर शब्दभेदी बाण चला दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। शत्रुओं के हाथ दुर्गति से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान तथा चन्द बरदाई ने एक-दूसरे का वध कर दिया। वीरांगना संयोगिता भी राजपूत धर्म का निर्वाह करते हुए सती हो गई।

source:http://agoodplace4all.com

Wednesday, May 16, 2012

अमर हो गया 18 वीं सदी के एक राजा का प्रेम!

राजस्थान, जो अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में शुमार है,जहां एक ओर दूर तक फैला हुआ थार का रेगिस्तान है तो दूसरी ओर राजपूत राजा-महाराजाओं के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा गाते हुए ऊंचे-ऊंचे महल हैं|जहां की कला संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में अपनी एक अलग छाप लिए हुए है| 

पूरे विश्व में अपना परचम फहराने वाली इन्ही कलाओं में से एक कला हैं यहां की लघु चित्रकारी|जिसकी शुरुआत मुगलों के द्वारा की गई थी| इस कला को फराज (पार्शिया) से लाया गया था| हुमायु ने फ़राज़ से चित्रकारों को बुलाया था, बाद में अकबर ने इसे बढ़ावा देने के लिए एक शिल्प कला का निर्माण करवाया था| फ़राज़ के कलाकारों ने इस भारतीय कलाकारों को इस कला का प्रशिक्षण दिया, बाद में इस खास शैली में तैयार किये गए चित्र राजस्थानी चित्र या राजपूत चित्र कहलाए|
बनी-ठनी 
अठारहवीं सदी में राजस्थान के किशनगढ़ प्रान्त में एक नई कला ने जन्म लिया जिसे आज भी बनी ठनी के नाम से जाना जाता है|इस कला का जन्म महाराजा सावंत सिंह के शासन काल में हुआ था| कहा जाता है कि महाराजा सावंत सिंह को बनी ठनी नामक एक दासी से प्रेम हो गया था, तब उन्होंने उस समय के कलाकारों को आदेश दिया कि वे कृष्ण-राधा के प्रेम चित्रों के रूप में उनकी और उनकी प्रेमिका की तस्वीरें बनाएं| बाद में यह चित्रकारी इतनी प्रसिद्ध हो गई कि इसे भारत की मोनालिसा के नाम से जाना जाने लगा|आज भी देश-विदेश में बनी ठनी का एक अलग ही मुकाम है|













Source:bhaskar.com

Thursday, May 3, 2012

अपने को राजपूत कहते हो ?

एक गांव में प्रतापनेर गद्दी के राजा भेष बदल कर गये और एक दरवाजे पर पडे तख्त पर बैठ गये। गांव राजपूतों का कहा जाता था। सभी अपने अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। घर के मर्द सभी खेती किसानी और अपने अपने कामो को करने के लिये गांव से बाहर गये थे। कोई भी दरवाजे पर पानी के लिये भी पूंछने के लिये नही आया। घर की बडी बूढी स्त्रियां बाहर निकली और घूंघट से देखकर फ़िर घर के भीतर चली गयीं,दोपहर तक वे जैसे बैठे थे वैसे ही बैठे रहे। दोपहर को घर के मर्द आये और उनसे पहिचान निकालने की बात की कि कौन और कहां से आये है क्या काम है आदि बातें कीं,जब उनकी कोई पहिचान नही निकली तो उन्होने भी कोई बात करने की रुचि नही ली और अपने अपने अनुसार घर के भीतर ही जाकर भोजन आदि करने के बाद फ़िर अपने अपने कामों को करने के लिये चले गये। राजा साहब शाम को अपने राज्य की तरफ़ प्रस्थान कर गये।
दूसरे दिन वे उसी गांव के पास वाले गांव में गये वहां के लोग भी अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। वे एक घर के बाहर पडे तख्त पर जाकर बैठ गये,जैसे ही वे तख्त पर बैठे घर से एक बच्चा निकला और उनके पैर छूकर घर के अन्दर वापस चला गया,घर से एक बुजुर्ग स्त्री निकली और एक दरी तथा तकिया लाकर उस तख्त पर बिछा दी। उसने जब तक दरी और तकिया लगायी तब तक वही बच्चा एक प्लेट में मिठाई और पानी लेकर आया,राजा साहब के आगे रखकर सिर नीचे करके खडा हो गया,राजा साहब ने प्लेट से एक टुकडा मिठाई का उठाया और खाकर पानी पिया और तकिया के सहारे आराम करने की मुद्रा में लेट गये। दोपहर को उस घर के मर्द काम धन्धे से वापस आये तो उन्हे तख्त पर लेटा देखकर घर के लोगों को डांटने लगे कि लकडी के तख्त पर केवल दरी ही क्यों बिछाई कोई गद्दा बिछाना चाहिये था। जल्दी से आकर उन्होने राजा साहब के नीचे गद्दा लगाया और उनके गांव आदि के बारे में कोई बात नही पूंछ कर भोजन के लिये गुहार की कि वे उनके साथ चल कर चौका में भोजन करें। राजा साहब ने उनके साथ चौका में भोजन के लिये पीढा पर बैठ गये और सभी लोगों के सामने भोजन आने का इन्तजार किया जैसे ही सभी लोगों के सामने भोजन की थालियां आ गयीं सभी लोगों ने पहले राजा साहब को भोजन करने के लिये प्रार्थना की,राजा साहब ने भोजन का ग्रास लेकर जैसे ही ग्रहण किया सभी घर के लोगों ने भोजन करना शुरु कर दिया। राजा साहब को भूख तो नही थी लेकिन जानबूझ कर वे काफ़ी समय तक भोजन करते रहे,जब तक उन्होने भोजन किया,तब तक घर के बाकी के मर्द खाना खा चुकने के बाद भी राजा साहब के भोजन को समाप्त करने का इन्तजार करने लगे,राजा साहब ने जैसे ही हाथ धोये,घर के बाकी के मर्दों ने भी अपने अपने हाथ धोकर भोजन समाप्त किया। राजा साहब को तम्बाकू पान और हुक्का आदि के लिये पूंछ कर और राजा साहब के मना करने पर उन लोगों ने उनके आने का कारण पूंछा कि वे कहां से आये है,और क्या काम है,राजा साहब ने अपने को गुप्त रखने के बाद बताया कि वे किसी रिस्ते की तलाश में जो उनकी लडकी के लिये मिले,कोई अच्छा घर और वर मिलने के बाद वे उनसे मिलेंगे,इतना कहकर वे अपने राज्य को वापस चले गये।
तीसरे दिन राजा साहब फ़िर से एक गांव में गये और किसी दरवाजे पर जाकर बैठ गये। उस गांव के लोग भी अपने अपने नामों के आगे सिंह लगाया करते थे। जैसे भी जाकर वे तख्त पर बैठे,दरवाजे पर बैठा एक वृद्ध व्यक्ति उनसे सवाल जबाब करने लगा,उनकी पहिचान को पूंछने लगा,उनकी जाति पांति के बारे में पूंछने लगा। राजा साहब ने अपने को छुपाते हुये कहा कि वे जाति से कोरी है,वह वृद्ध हडक कर बोला कि कोरी को हिम्मत कैसे हुयी कि वह उनके तख्त पर आकर बैठ गया,राजा साहब उसके दरवाजे से उठ कर अपने राज्य को वापस चले गये,उन्होने जबाब कुछ नही दिया।
यह तीनो गांव उन्ही की राज्य में आते थे,और राजपूतों की गद्दी होने के कारण उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी कि वे अपने जाति और बिरादरी के लिये हितों के काम करें। कुछ समय बाद उन्होने उन तीनों गावों के उन्ही लोगों को बुलाया,जिनके दरवाजे पर वे जाकर बैठे थे। उन लोगों ने आकर राजा साहब को देखा तो उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी। कि यह आदमी तो उनके घर के दरवाजे पर बैठा थ,सभी अपने अपने मन में अपने अपने मन के अनुसार सोचने लगे कि उन्होने क्या क्या बर्ताव उनके साथ किया था। राजा साहब ने भरी सभा में पहले गांव वाले व्यक्ति को बुलाया और पूंछा कि वह अपने नाम के आगे सिंह कैसे लगाने लगा,उस व्यक्ति ने जबाब दिया कि उसके पूर्वज भी सिंह लगाया करते थे इसलिये उसने अपने नाम के आगे सिंह लगाना शुरु किया था। भाटों को बुलाकर उस गांव के इतिहास के बारे में पता लगाया गया,उस गांव की पुरानी नींव वास्तव में किसी राजपूत की ही थी,लेकिन राजपूत रानी के मरने के बाद किसी बेडिनी को घर में घर में बिठा लेने के कारण जो औलाद पैदा हुयी वह बाप के नाम का सिंह तो लगाने लगी लेकिन राजपूती बाना सही नही रख पायी। धीरे धीरे खून के अन्दर ठंडक आने लगी और राजपूती का खून खून को आकर्षित नही कर पाया। फ़लस्वरूप राजा को बिना किसी भोजन पानी के और मान मनुहार के वापस आना पडा,कारण राजपूती खून उन लोगों में होता तो वे अपने खून को पहिचान कर लगाव रखते। दूसरे गांव में राजा साहब गये थे,उस गांव के लोगों ने बिना किसी पूंछताछ के उनकी मान मनुहार की थी,उस गांव की राजपूती प्रथा जैसे पहले थी वैसी ही चली आ रही थी,इसलिये उन लोगों ने जैसा उनके पास था वैसा उनका सत्कार किया। तीसरे गांव में जहां राजा ने अपने को कोरी बताया था,वे लोग वास्तव में बने हुये राजपूत थे,और अन्य जाति का होने के कारण पहले ही जाति पांति के बारे में पूंछने लगे थे।
कहने का तात्पर्य है कि राजपूत केवल सिंह लगाने से नही बना जा सकता है,जो राजपूती खून को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकता है वही सच्चा राजपूत है,अगर राजपूत के घर में कोई बेडिनी शादी के बाद आ गयी है तो वह पता नही किस जाति के खून को घर में लाकर पालने पोषने के बाद सिंह तो लगा देगी लेकिन जो वास्तविक राजपूती खून है उसे कहां से लेकर आयेगी। और आगे चलकर जो सन्तान होगी वह अपने खून को भूलने लगेगी और दूसरे खूनों की तरफ़ आकर्षित होकर भटकने लगेगी।


source:kalgati.wikidot.com/

Tuesday, April 17, 2012

राजपूतों की वंशावली


"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,

चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।

सूर्य वंश की दस शाखायें:-

१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने

चन्द्र वंश की दस शाखायें:-

१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैस

अग्निवंश की चार शाखायें:-

१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.

ऋषिवंश की बारह शाखायें:-

१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला

चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.

क्षत्रिय जातियो की सूची

क्रमांकनामगोत्रवंशस्थान और जिला
१.सूर्यवंशीभारद्वाजसूर्यबुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
२.गहलोतबैजवापेणसूर्यमथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
३.सिसोदियाबैजवापेडसूर्यमहाराणा उदयपुर स्टेट
४.कछवाहामानवसूर्यमहाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
५.राठोडकश्यपसूर्यजोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
६.सोमवंशीअत्रयचन्दप्रतापगढ और जिला हरदोई
७.यदुवंशीअत्रयचन्दराजकरौली राजपूताने में
८.भाटीअत्रयजादौनमहारजा जैसलमेर राजपूताना
९.जाडेचाअत्रययदुवंशीमहाराजा कच्छ भुज
१०.जादवाअत्रयजादौनशाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११.तोमरव्याघ्रचन्दपाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२.कटियारव्याघ्रतोंवरधरमपुर का राज और हरदोई
१३.पालीवारव्याघ्रतोंवरगोरखपुर
१४.परिहारकौशल्यअग्निइतिहास में जानना चाहिये
१५.तखीकौशल्यपरिहारपंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१६.पंवारवशिष्ठअग्निमालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१७.सोलंकीभारद्वाजअग्निराजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१८.चौहानवत्सअग्निराजपूताना पूर्व और सर्वत्र
१९.हाडावत्सचौहानकोटा बूंदी और हाडौती देश
२०.खींचीवत्सचौहानखींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२१.भदौरियावत्सचौहाननौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२२.देवडावत्सचौहानराजपूताना सिरोही राज
२३.शम्भरीवत्सचौहाननीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२४.बच्छगोत्रीवत्सचौहानप्रतापगढ सुल्तानपुर
२५.राजकुमारवत्सचौहानदियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२६.पवैयावत्सचौहानग्वालियर
२७.गौर,गौडभारद्वाजसूर्यशिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२८.वैसभारद्वाजचन्द्रउन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
२९.गेहरवारकश्यपसूर्यमाडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
३०.सेंगरगौतमब्रह्मक्षत्रियजगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३१.कनपुरियाभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियपूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३२.बिसैनवत्सब्रह्मक्षत्रियगोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं
३३.निकुम्भवशिष्ठसूर्यगोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३४.सिरसेतभारद्वाजसूर्यगाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३५.कटहरियावशिष्ठ्याभारद्वाज,सूर्यबरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३६.वाच्छिलअत्रयवच्छिलचन्द्रमथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३७.बढगूजरवशिष्ठसूर्यअनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३८.झालामरीच कश्यपचन्द्रधागधरा मेवाड झालावाड कोटा
३९.गौतमगौतमब्रह्मक्षत्रियराजा अर्गल फ़तेहपुर
४०.रैकवारभारद्वाजसूर्यबहरायच सीतापुर बाराबंकी
४१.करचुल हैहयकृष्णात्रेयचन्द्रबलिया फ़ैजाबाद अवध
४२.चन्देलचान्द्रायनचन्द्रवंशीगिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
४३.जनवारकौशल्यसोलंकी शाखाबलरामपुर अवध के जिलों में
४४.बहरेलियाभारद्वाजवैस की गोद सिसोदियारायबरेली बाराबंकी
४५.दीत्ततकश्यपसूर्यवंश की शाखाउन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
४६.सिलारशौनिकचन्द्रसूरत राजपूतानी
४७.सिकरवारभारद्वाजबढगूजरग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
४८.सुरवारगर्गसूर्यकठियावाड में
४९.सुर्वैयावशिष्ठयदुवंशकाठियावाड
५०.मोरीब्रह्मगौतमसूर्यमथुरा आगरा धौलपुर
५१.टांक (तत्तक)शौनिकनागवंशमैनपुरी और पंजाब
५२.गुप्तगार्ग्यचन्द्रअब इस वंश का पता नही है
५३.कौशिककौशिकचन्द्रबलिया आजमगढ गोरखपुर
५४.भृगुवंशीभार्गवचन्द्रवनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
५५.गर्गवंशीगर्गब्रह्मक्षत्रियनृसिंहपुर सुल्तानपुर
५६.पडियारिया,देवल,सांकृतसामब्रह्मक्षत्रियराजपूताना
५७.ननवगकौशल्यचन्द्रजौनपुर जिला
५८.वनाफ़रपाराशर,कश्यपचन्द्रबुन्देलखन्ड बांदा वनारस
५९.जैसवारकश्यपयदुवंशीमिर्जापुर एटा मैनपुरी
६०.चौलवंशभारद्वाजसूर्यदक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६१.निमवंशीकश्यपसूर्यसंयुक्त प्रांत
६२.वैनवंशीवैन्यसोमवंशीमिर्जापुर
६३.दाहिमागार्गेयब्रह्मक्षत्रियकाठियावाड राजपूताना
६४.पुण्डीरकपिलब्रह्मक्षत्रियपंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
६५.तुलवाआत्रेयचन्द्रराजाविजयनगर
६६.कटोचकश्यपभूमिवंशराजानादौन कोटकांगडा
६७.चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावतवशिष्ठपंवार की शाखामलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६८.अहवनवशिष्ठचावडा,कुमावतखेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
६९.डौडियावशिष्ठपंवार शाखाबुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७०.गोहिलबैजबापेणगहलोत शाखाकाठियावाड
७१.बुन्देलाकश्यपगहरवारशाखाबुन्देलखंड के रजवाडे
७२.काठीकश्यपगहरवारशाखाकाठियावाड झांसी बांदा
७३.जोहियापाराशरचन्द्रपंजाब देश मे
७४.गढावंशीकांवायनचन्द्रगढावाडी के लिंगपट्टम में
७५.मौखरीअत्रयचन्द्रप्राचीन राजवंश था
७६.लिच्छिवीकश्यपसूर्यप्राचीन राजवंश था
७७.बाकाटकविष्णुवर्धनसूर्यअब पता नहीं चलता है
७८.पालकश्यपसूर्ययह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
७९.सैनअत्रयब्रह्मक्षत्रिययह वंश भी भारत में बिखर गया है
८०.कदम्बमान्डग्यब्रह्मक्षत्रियदक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८१.पोलचभारद्वाजब्रह्मक्षत्रियदक्षिण में मराठा के पास में है
८२.बाणवंशकश्यपअसुरवंशश्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८३.काकुतीयभारद्वाजचन्द्र,प्राचीन सूर्य थाअब पता नही मिलता है
८४.सुणग वंशभारद्वाजचन्द्र,पाचीन सूर्य था,अब पता नही मिलता है
८५.दहियाकश्यपराठौड शाखामारवाड में जोधपुर
८६.जेठवाकश्यपहनुमानवंशीराजधूमली काठियावाड
८७.मोहिलवत्सचौहान शाखामहाराष्ट्र मे है
८८.बल्लाभारद्वाजसूर्यकाठियावाड मे मिलते हैं
८९.डाबीवशिष्ठयदुवंशराजस्थान
९०.खरवडवशिष्ठयदुवंशमेवाड उदयपुर
९१.सुकेतभारद्वाजगौड की शाखापंजाब में पहाडी राजा
९२.पांड्यअत्रयचन्दअब इस वंश का पता नहीं
९३.पठानियापाराशरवनाफ़रशाखापठानकोट राजा पंजाब
९४.बमटेलाशांडल्यविसेन शाखाहरदोई फ़र्रुखाबाद
९५.बारहगैयावत्सचौहानगाजीपुर
९६.भैंसोलियावत्सचौहानभैंसोल गाग सुल्तानपुर
९७.चन्दोसियाभारद्वाजवैससुल्तानपुर
९८.चौपटखम्बकश्यपब्रह्मक्षत्रियजौनपुर
९९.धाकरेभारद्वाज(भृगु)ब्रह्मक्षत्रियआगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१००.धन्वस्तयमदाग्निब्रह्मक्षत्रियजौनपुर आजमगढ वनारस
१०१.धेकाहाकश्यपपंवार की शाखाभोजपुर शाहाबाद
१०२.दोबर(दोनवर)वत्स या कश्यपब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०३.हरद्वारभार्गवचन्द्र शाखाआजमगढ
१०४.जायसकश्यपराठौड की शाखारायबरेली मथुरा
१०५.जरोलियाव्याघ्रपदचन्द्रबुलन्दशहर
१०६.जसावतमानव्यकछवाह शाखामथुरा आगरा
१०७.जोतियाना(भुटियाना)मानव्यकश्यप,कछवाह शाखामुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०८.घोडेवाहामानव्यकछवाह शाखालुधियाना होशियारपुर जालन्धर
१०९.कछनियाशान्डिल्यब्रह्मक्षत्रियअवध के जिलों में
११०.काकनभृगुब्रह्मक्षत्रियगाजीपुर आजमगढ
१११.कासिबकश्यपकछवाह शाखाशाहजहांपुर
११२.किनवारकश्यपसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार में
११३.बरहियागौतमसेंगर की शाखापूर्व बंगाल और बिहार
११४.लौतमियाभारद्वाजबढगूजर शाखाबलिया गाजी पुर शाहाबाद
११५.मौनसमानव्यकछवाह शाखामिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११६.नगबकमानव्यकछवाह शाखाजौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११७.पलवारव्याघ्रसोमवंशी शाखाआजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११८.रायजादेपाराशरचन्द्र की शाखापूर्व अवध में
११९.सिंहेलकश्यपसूर्यआजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२०.तरकडकश्यपदीक्षित शाखाआगरा मथुरा
१२१.तिसहियाकौशल्यपरिहारइलाहाबाद परगना हंडिया
१२२.तिरोताकश्यपतंवर की शाखाआरा शाहाबाद भोजपुर
१२३.उदमतियावत्सब्रह्मक्षत्रियआजमगढ गोरखपुर
१२४.भालेवशिष्ठपंवारअलीगढ
१२५.भालेसुल्तानभारद्वाजवैस की शाखारायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२६.जैवारव्याघ्रतंवर की शाखादतिया झांसी बुन्देलखंड
१२७.सरगैयांव्याघ्रसोमवंशहमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२८.किसनातिलअत्रयतोमरशाखादतिया बुन्देलखंड
१२९.टडैयाभारद्वाजसोलंकीशाखाझांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३०.खागरअत्रययदुवंश शाखाजालौन हमीरपुर झांसी
१३१.पिपरियाभारद्वाजगौडों की शाखाबुन्देलखंड
१३२.सिरसवारअत्रयचन्द्र शाखाबुन्देलखंड
१३३.खींचरवत्सचौहान शाखाफ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३४.खातीकश्यपदीक्षित शाखाबुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३५.आहडियाबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३६.उदावतबैजवापेणगहलोतआजमगढ
१३७.उजैनेवशिष्ठपंवारआरा डुमरिया
१३८.अमेठियाभारद्वाजगौडअमेठी लखनऊ सीतापुर
१३९.दुर्गवंशीकश्यपदीक्षितराजा जौनपुर राजाबाजार
१४०.बिलखरियाकश्यपदीक्षितप्रतापगढ उमरी राजा
१४१.डोमराकश्यपसूर्यकश्मीर राज्य और बलिया
१४२.निर्वाणवत्सचौहानराजपूताना (राजस्थान)
१४३.जाटूव्याघ्रतोमरराजस्थान,हिसार पंजाब
१४४.नरौनीमानव्यकछवाहाबलिया आरा
१४५.भनवगभारद्वाजकनपुरियाजौनपुर
१४६.गिदवरियावशिष्ठपंवारबिहार मुंगेर भागलपुर
१४७.रक्षेलकश्यपसूर्यरीवा राज्य में बघेलखंड
१४८.कटारियाभारद्वाजसोलंकीझांसी मालवा बुन्देलखंड
१४९.रजवारवत्सचौहानपूर्व मे बुन्देलखंड
१५०.द्वारव्याघ्रतोमरजालौन झांसी हमीरपुर
१५१.इन्दौरियाव्याघ्रतोमरआगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५२.छोकरअत्रययदुवंशअलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५३.जांगडावत्सचौहानबुलन्दशहर पूर्व में झांसी


source:kalgati.wikidot.com

 
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