भारतभूमि हमेशा ही वीरों की जननी रही है. यहां समय-समय पर ऐसे वीर हुए जिनकी वीर गाथा सुन हर भारतवासी का सीना गर्व से तन जाता है. भारतभूमि के महान वीरों में एक नाम वीर छत्रपति शिवाजी का भी आता है जिन्होंने अपने पराक्रम से औरंगजेब जैसे महान मुगल शासक की सेना को भी परास्त कर दिया था. एक महान, साहसी और चतुर हिंदू शासक के रूप में छत्रपति शिवाजी को यह जग हमेशा याद करेगा.
कम साधन होने के बाद भी छत्रपति शिवाजी ने अपनी सेना को एक संयोजित ढंग से रण में माहिर बनाया. अपनी बहादुरी, साहस एवं चतुरता से उन्होंने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की विशाल सेना से कई बार जोरदार टक्कर ली और अपनी शक्ति को बढ़ाया. छत्रपति शिवाजी कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे. वे कई लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें पुन हिन्दू धर्म में लाए. छत्रपति शिवाजी बहुत ही चरित्रवान व्यक्ति थे. वे महिलाओं का बहुत आदर करते थे. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वालों और निर्दोष व्यक्तियों की हत्या करने वालों को कड़ा दंड देते थे.
छत्रपति शिवाजी की अभूतपूर्व सफलता का रहस्य मात्र उनकी वीरता एवं शौर्य में निहित नहीं है, अपितु उनकी आध्यात्मिकता का भी उनकी उपलब्धियों में बहुत बडा योगदान है. उल्लेखनीय है कि मराठा सरदार से छत्रपति बनने के मार्ग में बहुत सारी बाधाएं आईं किंतु उन सबका उन्मूलन करते हुए वह अपने लक्ष्य पर पहुंच कर ही रहे.
मुगल बादशाह औरंगजेब अपनी विराट शाही सेना के बावजूद उनका बाल बांका भी नहीं कर सका और उसके एक बडे भूभाग पर उन्होंने अधिकार प्राप्त कर लिया. छल से उन्हें और उनके किशोर लडके को आगरे में कैद करने में औरंगजेब ने सफलता प्राप्त की, तो शिवाजी अपनी बुद्धिमता और अपनी इष्ट देवी तुलजा भवानी की कृपा के बल पर बंधन मुक्त होने में सफल हो गए. असहाय जनता के लिए शिवाजी पहले-पहल एक समर्थ रक्षक बनकर उभरे. छत्रपति निस्संदेह भारत-माता के प्रथम सुपुत्र सिद्ध हुए, जिन्होंने देशवासियों के अंदर नवीन उत्साह का संचार किया.
शिवाजी यथार्थ में एक आदर्शवादी थे. उन्होंने मुगलों, बीजापुर के सुल्तान, गोवा के पुर्तग़ालियों और जंजीरा स्थित अबीसीनिया के समुद्री डाकुओं के प्रबल प्रतिरोध के बावजूद दक्षिण में एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना की. उन्हीं के प्रयासों से भविष्य में विशाल मराठा साम्राज्य की स्थापना हुई. उनके गुरू दक्षिण भारत में एक महान संत गुरु रामदास थे. शिवाजी का गुरू प्रेम भी जगप्रसिद्ध था.
शिवाजी की 1680 में कुछ समय बीमार रहने के बाद अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल को मृत्यु हो गई. आज भी देश में छत्रपति शिवाजी का नाम एक महान सेनानी और लड़ाके के रूप में लिया जाता है जिनकी रणनीति का अध्ययन आज भी लोग करते हैं.
source:jagranjunction.com/
1 comments:
Today we again need Veer Shiva ji Principles,our India is fighting internal coward terrorist.
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