पृथ्वीराज चौहान, जो कि दिल्ली के चौहान राजवंश के अन्तिम शासक थे का जन्म सन् 1168 में हुआ था। उनके पिता सोमेश्वर चौहान तथा माता कर्पूरी देवी थीं। सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे तथा कर्पूरी देवी दिल्ली के राजा अनंगपाल की इकलौती पुत्री थीं। उत्तराधिकारी के अभाव में अनंगपाल ने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का राज्यभार सौंपा था। पृथ्वीराज चौहान बाल्यपन से ही कुशाग्रबुद्धि थे तथा वे अल्पायु में ही सैन्य कौशल में पारंगत हो गए थे। शब्दभेदी बाण चलाना उनकी एक विशेष योग्यता थी। माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान असीमित बल के स्वामी थे और बचपन में ही उन्होंने शेर से लड़ाई कर के उसका जबड़ा फाड़ डाला था। उन्हें एक युद्धप्रिय राजा के रूप में जाना जाता है। मात्र तेरह वर्ष की अवस्था में उन्होंने गुजरात के शक्तिशाली राजा भीमदेव को युद्ध में हरा दिया था। दिल्ली के राज्य सिंहासन पर आरूढ़ होने पर उन्होंने पिथौरागढ़ नामक किले का निर्माण करवाया था इस कारण से पृथ्वीराज चौहान को “राय पिथौरा” भी कहा जाता है।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेमकथा भी बेहद मशहूर तथा रोचक है। संयोगिता कनौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं। पृथ्वीराज और संयोगिता में आपस में प्रेम सम्बन्ध था किन्तु दोनों का विवाह होना आसान बात नहीं थी क्योंकि पृथ्वीराज और जयचंद के बीच कट्टर दुश्मनी थी। जयचंद ने राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया जिसमें पृथ्वीराज चौहान को निमन्त्रित नहीं किया गया। उल्टे पृथ्वीराज का अपमान करने के उद्देश्य से जयचंद ने दरबान के स्थान पर उनकी प्रतिमा बनवा कर लगवा दी। इस अपमान का बदला लेने के लिए वीर पृथ्वीराज चौहान ने स्वयंवर सभा से संयोगिता का हरण कर उससे विवाह कर लिया।
तराइन के प्रथम युद्ध (1191 ) में पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को बुरी तरह से परास्त किया किन्तु घायल गोरी को उसका एक सैनिक बचा ले जाने में सफल हो गया। पृथ्वीराज चाहते तो गोरी की नेतृत्वविहीन भागती हुई सेना को रौंद सकते थे किन्तु राजपूत धर्म का निर्वाह करते हूए उन्होंने उन्हें भाग जाने दिया। शहाबुद्दीन गोरी ने लगभग एक साल बाद फिर से हमला किया और तराइन के इस दुसरे युद्ध (1192 ) इ. में पृथ्वीराज की पराजय हुई। कहा जाता है कि गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को उनके मित्र एवं दरबारी कवि चन्द बरदाई को धोखा देकर कैद कर लिया था। कैद करने के बाद मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की आँखों को गरम सलाखों से जला दिया था और वे दृष्टिहीन हो गए थे।
कहा जाता है कि गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने की योग्यता का प्रदर्शन का आयोजन किया था। उस आयोजन में चन्द बरदाई ने निम्न दोहा कह कर पृथ्वीराज को गोरी के बैठने के स्थान का संकेत दे दिया था -
चार बाँस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान हैं मत चूके चौहान॥
ता ऊपर सुल्तान हैं मत चूके चौहान॥
प्रदर्शन की सफलता पर गोरी के द्वारा “शाबाश” कहते ही पृथ्वीराज चौहान ने गोरी के मुख से निकले शब्दों आधार पर शब्दभेदी बाण चला दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। शत्रुओं के हाथ दुर्गति से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान तथा चन्द बरदाई ने एक-दूसरे का वध कर दिया। वीरांगना संयोगिता भी राजपूत धर्म का निर्वाह करते हुए सती हो गई।
source:http://agoodplace4all.com
2 comments:
वीर शिरोमणि जो शांता और सृंगी ऋषि के वंशज थे-
को सादर प्रणाम -
http://dcgpthravikar.blogspot.in/
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