Sunday, March 23, 2014

वीर छत्रपति शिवाजी

भारतभूमि हमेशा ही वीरों की जननी रही है. यहां समय-समय पर ऐसे वीर हुए जिनकी वीर गाथा सुन हर भारतवासी का सीना गर्व से तन जाता है. भारतभूमि के महान वीरों में एक नाम वीर छत्रपति शिवाजी का भी आता है जिन्होंने अपने पराक्रम से औरंगजेब जैसे महान मुगल शासक की सेना को भी परास्त कर दिया था. एक महान, साहसी और चतुर हिंदू शासक के रूप में छत्रपति शिवाजी को यह जग हमेशा याद करेगा. कम साधन होने के बाद भी छत्रपति शिवाजी ने अपनी सेना को एक संयोजित ढंग से रण में माहिर बनाया. अपनी बहादुरी, साहस एवं चतुरता से उन्‍होंने औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट की विशाल सेना से कई बार जोरदार टक्कर ली और अपनी शक्ति को बढ़ाया. छत्रपति शिवाजी कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे. वे कई लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्‍हें पुन हिन्‍दू धर्म में लाए. छत्रपति...

Sunday, November 24, 2013

महाराणा प्रताप की 40 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया

हिमाचल में बनेंगे राजपूत और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने घोषणा की है कि राज्य में राजपूत कल्याण बोर्ड और ब्राह्मण कल्याण बोर्ड गठित किए जाएंगे। इन दोनों बोर्डों के अध्यक्ष वह खुद होंगे। मुख्यमंत्री यहां महाराणा प्रताप परिसर में प्रदेश राजपूत कल्याण ट्रस्ट और सभा की ओर से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने महाराणा प्रताप की 40 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण भी किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि दोनों समुदाय के लोग इन बोर्डों के माध्यम से सीधे सरकार के साथ अपनी बात उठा सकेंगे। इससे पहले भी कांग्रेस सरकार ने लगभग सभी समुदायों के लिए बोर्ड बनाए हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि महाराणा प्रताप ने कभी विदेशी सत्ता को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने तकलीफें सहीं, लेकिन अपनी आजादी को नहीं खोया। इससे पहले कैबिनेट मंत्री सुजान सिंह पठानिया ने कहा कि खुद को सुधारने के पश्चात...

Monday, October 29, 2012

पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान, जो कि दिल्ली के चौहान राजवंश के अन्तिम शासक थे का जन्म सन् 1168 में हुआ था। उनके पिता सोमेश्वर चौहान तथा माता कर्पूरी देवी थीं। सोमेश्वर चौहान अजमेर के राजा थे तथा कर्पूरी देवी दिल्ली के राजा अनंगपाल की इकलौती पुत्री थीं। उत्तराधिकारी के अभाव में अनंगपाल ने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का राज्यभार सौंपा था। पृथ्वीराज चौहान बाल्यपन से ही कुशाग्रबुद्धि थे तथा वे अल्पायु में ही सैन्य कौशल में पारंगत हो गए थे। शब्दभेदी बाण चलाना उनकी एक विशेष योग्यता थी। माना जाता है कि पृथ्वीराज चौहान असीमित बल के स्वामी थे और बचपन में ही उन्होंने शेर से लड़ाई कर के उसका जबड़ा फाड़ डाला था। उन्हें एक युद्धप्रिय राजा के रूप में जाना जाता है। मात्र तेरह वर्ष की अवस्था में उन्होंने गुजरात के शक्तिशाली राजा भीमदेव को युद्ध में हरा दिया था। दिल्ली...

Wednesday, May 16, 2012

अमर हो गया 18 वीं सदी के एक राजा का प्रेम!

राजस्थान, जो अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में शुमार है,जहां एक ओर दूर तक फैला हुआ थार का रेगिस्तान है तो दूसरी ओर राजपूत राजा-महाराजाओं के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा गाते हुए ऊंचे-ऊंचे महल हैं|जहां की कला संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में अपनी एक अलग छाप लिए हुए है|  पूरे विश्व में अपना परचम फहराने वाली इन्ही कलाओं में से एक कला हैं यहां की लघु चित्रकारी|जिसकी शुरुआत मुगलों के द्वारा की गई थी| इस कला को फराज (पार्शिया) से लाया गया था| हुमायु ने फ़राज़ से चित्रकारों को बुलाया था, बाद में अकबर ने इसे बढ़ावा देने के लिए एक शिल्प कला का निर्माण करवाया था| फ़राज़ के कलाकारों ने इस भारतीय कलाकारों को इस कला का प्रशिक्षण दिया, बाद में इस खास शैली में तैयार किये गए चित्र राजस्थानी चित्र या राजपूत चित्र कहलाए| बनी-ठनी  अठारहवीं सदी में राजस्थान...

Thursday, May 3, 2012

अपने को राजपूत कहते हो ?

एक गांव में प्रतापनेर गद्दी के राजा भेष बदल कर गये और एक दरवाजे पर पडे तख्त पर बैठ गये। गांव राजपूतों का कहा जाता था। सभी अपने अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। घर के मर्द सभी खेती किसानी और अपने अपने कामो को करने के लिये गांव से बाहर गये थे। कोई भी दरवाजे पर पानी के लिये भी पूंछने के लिये नही आया। घर की बडी बूढी स्त्रियां बाहर निकली और घूंघट से देखकर फ़िर घर के भीतर चली गयीं,दोपहर तक वे जैसे बैठे थे वैसे ही बैठे रहे। दोपहर को घर के मर्द आये और उनसे पहिचान निकालने की बात की कि कौन और कहां से आये है क्या काम है आदि बातें कीं,जब उनकी कोई पहिचान नही निकली तो उन्होने भी कोई बात करने की रुचि नही ली और अपने अपने अनुसार घर के भीतर ही जाकर भोजन आदि करने के बाद फ़िर अपने अपने कामों को करने के लिये चले गये। राजा साहब शाम को अपने राज्य की तरफ़ प्रस्थान कर गये। दूसरे दिन वे उसी गांव के पास वाले गांव...

Tuesday, April 17, 2012

राजपूतों की वंशावली

"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाणभौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमानचौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।सूर्य वंश की दस शाखायें:-१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुननेचन्द्र वंश की दस शाखायें:-१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैसअग्निवंश की चार शाखायें:-१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.ऋषिवंश की बारह शाखायें:-१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स...

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