एक गांव में प्रतापनेर गद्दी के राजा भेष बदल कर गये और एक दरवाजे पर पडे तख्त पर बैठ गये। गांव राजपूतों का कहा जाता था। सभी अपने अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। घर के मर्द सभी खेती किसानी और अपने अपने कामो को करने के लिये गांव से बाहर गये थे। कोई भी दरवाजे पर पानी के लिये भी पूंछने के लिये नही आया। घर की बडी बूढी स्त्रियां बाहर निकली और घूंघट से देखकर फ़िर घर के भीतर चली गयीं,दोपहर तक वे जैसे बैठे थे वैसे ही बैठे रहे। दोपहर को घर के मर्द आये और उनसे पहिचान निकालने की बात की कि कौन और कहां से आये है क्या काम है आदि बातें कीं,जब उनकी कोई पहिचान नही निकली तो उन्होने भी कोई बात करने की रुचि नही ली और अपने अपने अनुसार घर के भीतर ही जाकर भोजन आदि करने के बाद फ़िर अपने अपने कामों को करने के लिये चले गये। राजा साहब शाम को अपने राज्य की तरफ़ प्रस्थान कर गये।
दूसरे दिन वे उसी गांव के पास वाले गांव में गये वहां के लोग भी अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। वे एक घर के बाहर पडे तख्त पर जाकर बैठ गये,जैसे ही वे तख्त पर बैठे घर से एक बच्चा निकला और उनके पैर छूकर घर के अन्दर वापस चला गया,घर से एक बुजुर्ग स्त्री निकली और एक दरी तथा तकिया लाकर उस तख्त पर बिछा दी। उसने जब तक दरी और तकिया लगायी तब तक वही बच्चा एक प्लेट में मिठाई और पानी लेकर आया,राजा साहब के आगे रखकर सिर नीचे करके खडा हो गया,राजा साहब ने प्लेट से एक टुकडा मिठाई का उठाया और खाकर पानी पिया और तकिया के सहारे आराम करने की मुद्रा में लेट गये। दोपहर को उस घर के मर्द काम धन्धे से वापस आये तो उन्हे तख्त पर लेटा देखकर घर के लोगों को डांटने लगे कि लकडी के तख्त पर केवल दरी ही क्यों बिछाई कोई गद्दा बिछाना चाहिये था। जल्दी से आकर उन्होने राजा साहब के नीचे गद्दा लगाया और उनके गांव आदि के बारे में कोई बात नही पूंछ कर भोजन के लिये गुहार की कि वे उनके साथ चल कर चौका में भोजन करें। राजा साहब ने उनके साथ चौका में भोजन के लिये पीढा पर बैठ गये और सभी लोगों के सामने भोजन आने का इन्तजार किया जैसे ही सभी लोगों के सामने भोजन की थालियां आ गयीं सभी लोगों ने पहले राजा साहब को भोजन करने के लिये प्रार्थना की,राजा साहब ने भोजन का ग्रास लेकर जैसे ही ग्रहण किया सभी घर के लोगों ने भोजन करना शुरु कर दिया। राजा साहब को भूख तो नही थी लेकिन जानबूझ कर वे काफ़ी समय तक भोजन करते रहे,जब तक उन्होने भोजन किया,तब तक घर के बाकी के मर्द खाना खा चुकने के बाद भी राजा साहब के भोजन को समाप्त करने का इन्तजार करने लगे,राजा साहब ने जैसे ही हाथ धोये,घर के बाकी के मर्दों ने भी अपने अपने हाथ धोकर भोजन समाप्त किया। राजा साहब को तम्बाकू पान और हुक्का आदि के लिये पूंछ कर और राजा साहब के मना करने पर उन लोगों ने उनके आने का कारण पूंछा कि वे कहां से आये है,और क्या काम है,राजा साहब ने अपने को गुप्त रखने के बाद बताया कि वे किसी रिस्ते की तलाश में जो उनकी लडकी के लिये मिले,कोई अच्छा घर और वर मिलने के बाद वे उनसे मिलेंगे,इतना कहकर वे अपने राज्य को वापस चले गये।
तीसरे दिन राजा साहब फ़िर से एक गांव में गये और किसी दरवाजे पर जाकर बैठ गये। उस गांव के लोग भी अपने अपने नामों के आगे सिंह लगाया करते थे। जैसे भी जाकर वे तख्त पर बैठे,दरवाजे पर बैठा एक वृद्ध व्यक्ति उनसे सवाल जबाब करने लगा,उनकी पहिचान को पूंछने लगा,उनकी जाति पांति के बारे में पूंछने लगा। राजा साहब ने अपने को छुपाते हुये कहा कि वे जाति से कोरी है,वह वृद्ध हडक कर बोला कि कोरी को हिम्मत कैसे हुयी कि वह उनके तख्त पर आकर बैठ गया,राजा साहब उसके दरवाजे से उठ कर अपने राज्य को वापस चले गये,उन्होने जबाब कुछ नही दिया।
यह तीनो गांव उन्ही की राज्य में आते थे,और राजपूतों की गद्दी होने के कारण उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी कि वे अपने जाति और बिरादरी के लिये हितों के काम करें। कुछ समय बाद उन्होने उन तीनों गावों के उन्ही लोगों को बुलाया,जिनके दरवाजे पर वे जाकर बैठे थे। उन लोगों ने आकर राजा साहब को देखा तो उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी। कि यह आदमी तो उनके घर के दरवाजे पर बैठा थ,सभी अपने अपने मन में अपने अपने मन के अनुसार सोचने लगे कि उन्होने क्या क्या बर्ताव उनके साथ किया था। राजा साहब ने भरी सभा में पहले गांव वाले व्यक्ति को बुलाया और पूंछा कि वह अपने नाम के आगे सिंह कैसे लगाने लगा,उस व्यक्ति ने जबाब दिया कि उसके पूर्वज भी सिंह लगाया करते थे इसलिये उसने अपने नाम के आगे सिंह लगाना शुरु किया था। भाटों को बुलाकर उस गांव के इतिहास के बारे में पता लगाया गया,उस गांव की पुरानी नींव वास्तव में किसी राजपूत की ही थी,लेकिन राजपूत रानी के मरने के बाद किसी बेडिनी को घर में घर में बिठा लेने के कारण जो औलाद पैदा हुयी वह बाप के नाम का सिंह तो लगाने लगी लेकिन राजपूती बाना सही नही रख पायी। धीरे धीरे खून के अन्दर ठंडक आने लगी और राजपूती का खून खून को आकर्षित नही कर पाया। फ़लस्वरूप राजा को बिना किसी भोजन पानी के और मान मनुहार के वापस आना पडा,कारण राजपूती खून उन लोगों में होता तो वे अपने खून को पहिचान कर लगाव रखते। दूसरे गांव में राजा साहब गये थे,उस गांव के लोगों ने बिना किसी पूंछताछ के उनकी मान मनुहार की थी,उस गांव की राजपूती प्रथा जैसे पहले थी वैसी ही चली आ रही थी,इसलिये उन लोगों ने जैसा उनके पास था वैसा उनका सत्कार किया। तीसरे गांव में जहां राजा ने अपने को कोरी बताया था,वे लोग वास्तव में बने हुये राजपूत थे,और अन्य जाति का होने के कारण पहले ही जाति पांति के बारे में पूंछने लगे थे।
कहने का तात्पर्य है कि राजपूत केवल सिंह लगाने से नही बना जा सकता है,जो राजपूती खून को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकता है वही सच्चा राजपूत है,अगर राजपूत के घर में कोई बेडिनी शादी के बाद आ गयी है तो वह पता नही किस जाति के खून को घर में लाकर पालने पोषने के बाद सिंह तो लगा देगी लेकिन जो वास्तविक राजपूती खून है उसे कहां से लेकर आयेगी। और आगे चलकर जो सन्तान होगी वह अपने खून को भूलने लगेगी और दूसरे खूनों की तरफ़ आकर्षित होकर भटकने लगेगी।
source:kalgati.wikidot.com/whoru
दूसरे दिन वे उसी गांव के पास वाले गांव में गये वहां के लोग भी अपने नाम के आगे सिंह लगाया करते थे। वे एक घर के बाहर पडे तख्त पर जाकर बैठ गये,जैसे ही वे तख्त पर बैठे घर से एक बच्चा निकला और उनके पैर छूकर घर के अन्दर वापस चला गया,घर से एक बुजुर्ग स्त्री निकली और एक दरी तथा तकिया लाकर उस तख्त पर बिछा दी। उसने जब तक दरी और तकिया लगायी तब तक वही बच्चा एक प्लेट में मिठाई और पानी लेकर आया,राजा साहब के आगे रखकर सिर नीचे करके खडा हो गया,राजा साहब ने प्लेट से एक टुकडा मिठाई का उठाया और खाकर पानी पिया और तकिया के सहारे आराम करने की मुद्रा में लेट गये। दोपहर को उस घर के मर्द काम धन्धे से वापस आये तो उन्हे तख्त पर लेटा देखकर घर के लोगों को डांटने लगे कि लकडी के तख्त पर केवल दरी ही क्यों बिछाई कोई गद्दा बिछाना चाहिये था। जल्दी से आकर उन्होने राजा साहब के नीचे गद्दा लगाया और उनके गांव आदि के बारे में कोई बात नही पूंछ कर भोजन के लिये गुहार की कि वे उनके साथ चल कर चौका में भोजन करें। राजा साहब ने उनके साथ चौका में भोजन के लिये पीढा पर बैठ गये और सभी लोगों के सामने भोजन आने का इन्तजार किया जैसे ही सभी लोगों के सामने भोजन की थालियां आ गयीं सभी लोगों ने पहले राजा साहब को भोजन करने के लिये प्रार्थना की,राजा साहब ने भोजन का ग्रास लेकर जैसे ही ग्रहण किया सभी घर के लोगों ने भोजन करना शुरु कर दिया। राजा साहब को भूख तो नही थी लेकिन जानबूझ कर वे काफ़ी समय तक भोजन करते रहे,जब तक उन्होने भोजन किया,तब तक घर के बाकी के मर्द खाना खा चुकने के बाद भी राजा साहब के भोजन को समाप्त करने का इन्तजार करने लगे,राजा साहब ने जैसे ही हाथ धोये,घर के बाकी के मर्दों ने भी अपने अपने हाथ धोकर भोजन समाप्त किया। राजा साहब को तम्बाकू पान और हुक्का आदि के लिये पूंछ कर और राजा साहब के मना करने पर उन लोगों ने उनके आने का कारण पूंछा कि वे कहां से आये है,और क्या काम है,राजा साहब ने अपने को गुप्त रखने के बाद बताया कि वे किसी रिस्ते की तलाश में जो उनकी लडकी के लिये मिले,कोई अच्छा घर और वर मिलने के बाद वे उनसे मिलेंगे,इतना कहकर वे अपने राज्य को वापस चले गये।
तीसरे दिन राजा साहब फ़िर से एक गांव में गये और किसी दरवाजे पर जाकर बैठ गये। उस गांव के लोग भी अपने अपने नामों के आगे सिंह लगाया करते थे। जैसे भी जाकर वे तख्त पर बैठे,दरवाजे पर बैठा एक वृद्ध व्यक्ति उनसे सवाल जबाब करने लगा,उनकी पहिचान को पूंछने लगा,उनकी जाति पांति के बारे में पूंछने लगा। राजा साहब ने अपने को छुपाते हुये कहा कि वे जाति से कोरी है,वह वृद्ध हडक कर बोला कि कोरी को हिम्मत कैसे हुयी कि वह उनके तख्त पर आकर बैठ गया,राजा साहब उसके दरवाजे से उठ कर अपने राज्य को वापस चले गये,उन्होने जबाब कुछ नही दिया।
यह तीनो गांव उन्ही की राज्य में आते थे,और राजपूतों की गद्दी होने के कारण उनकी जिम्मेदारी हुआ करती थी कि वे अपने जाति और बिरादरी के लिये हितों के काम करें। कुछ समय बाद उन्होने उन तीनों गावों के उन्ही लोगों को बुलाया,जिनके दरवाजे पर वे जाकर बैठे थे। उन लोगों ने आकर राजा साहब को देखा तो उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गयी। कि यह आदमी तो उनके घर के दरवाजे पर बैठा थ,सभी अपने अपने मन में अपने अपने मन के अनुसार सोचने लगे कि उन्होने क्या क्या बर्ताव उनके साथ किया था। राजा साहब ने भरी सभा में पहले गांव वाले व्यक्ति को बुलाया और पूंछा कि वह अपने नाम के आगे सिंह कैसे लगाने लगा,उस व्यक्ति ने जबाब दिया कि उसके पूर्वज भी सिंह लगाया करते थे इसलिये उसने अपने नाम के आगे सिंह लगाना शुरु किया था। भाटों को बुलाकर उस गांव के इतिहास के बारे में पता लगाया गया,उस गांव की पुरानी नींव वास्तव में किसी राजपूत की ही थी,लेकिन राजपूत रानी के मरने के बाद किसी बेडिनी को घर में घर में बिठा लेने के कारण जो औलाद पैदा हुयी वह बाप के नाम का सिंह तो लगाने लगी लेकिन राजपूती बाना सही नही रख पायी। धीरे धीरे खून के अन्दर ठंडक आने लगी और राजपूती का खून खून को आकर्षित नही कर पाया। फ़लस्वरूप राजा को बिना किसी भोजन पानी के और मान मनुहार के वापस आना पडा,कारण राजपूती खून उन लोगों में होता तो वे अपने खून को पहिचान कर लगाव रखते। दूसरे गांव में राजा साहब गये थे,उस गांव के लोगों ने बिना किसी पूंछताछ के उनकी मान मनुहार की थी,उस गांव की राजपूती प्रथा जैसे पहले थी वैसी ही चली आ रही थी,इसलिये उन लोगों ने जैसा उनके पास था वैसा उनका सत्कार किया। तीसरे गांव में जहां राजा ने अपने को कोरी बताया था,वे लोग वास्तव में बने हुये राजपूत थे,और अन्य जाति का होने के कारण पहले ही जाति पांति के बारे में पूंछने लगे थे।
कहने का तात्पर्य है कि राजपूत केवल सिंह लगाने से नही बना जा सकता है,जो राजपूती खून को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकता है वही सच्चा राजपूत है,अगर राजपूत के घर में कोई बेडिनी शादी के बाद आ गयी है तो वह पता नही किस जाति के खून को घर में लाकर पालने पोषने के बाद सिंह तो लगा देगी लेकिन जो वास्तविक राजपूती खून है उसे कहां से लेकर आयेगी। और आगे चलकर जो सन्तान होगी वह अपने खून को भूलने लगेगी और दूसरे खूनों की तरफ़ आकर्षित होकर भटकने लगेगी।
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