राजपूतों की ऐसी कहानी है , कि राजपूत ही राजपूत कि निशानी है l
हम जब आये तो तुमको एहसास था , कि कोई एक शेर मेरे पास था ll
हम गरम खून के उबाल हैं , प्यासी नदियों की चाल हैं , l
हमारी गर्जना विन्ध्य पर्वतों से टकराती है और हिमालय की चोटी तक जाती है ll
हम थक कर बैठेने वाले रड बांकुर नहीं ठाकुर हैं .... l
गर्व है हमें जिस माँ के पूत हैं , जीतो क्यूंकि हम राजपूत हैं ll
हम मृतयु वरन करने वाले जब जब हथियार उठाते हैं l
तब पानी से नहीं शोनीत से अपनी प्यास बुझाते हैं ll
हम राजपूत वीरो का जब सोया अभिमान जगता हैं l
तब महाकाल भी चरणों पे प्राणों की भीख मांगता हैं ll
0 comments:
Post a Comment