मैं राजपूत मैं राजपूत
मैं बलिदानों का हूँ प्रतिक मैं भारत माता का सपूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैने धरती के कागज पर असिधाराओ से लिखे लेख !
मैने अम्बर को लाल किया प्राची में उषाकाल देख !!
सूर्य चन्द्र की अग्नि में पूरित हें महातेज !
में सृष्टि के अवसान काल की विकट थिरकती प्रलय रेख !!
में महा ध्वंश का प्यासा भैरव महाकाल का अग्रदूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैने ब्रह्मा की शंख ध्वनि से धर्म और संस्कृति को सिखा !
भगवन विष्णु के प्रखर चक्र से वज्र कठोरता को सिखा !!
मैने प्रलयन्कर शिव से सिखा महा विनाश का मूल मंत्र !!
दानव राहू केतु से मैने अमर मृत्यु को है सिखा !!
बालक ध्रुव से अटल साधना ऋषियों से विध्या परमपुत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मेरे जौहर और शको से यमराज यहाँ खा गए मात !
जब कभी जली शमाँ तभी निज को कर दिया भष्मसात !!
सोमनाथ खानवा और हल्दीघाटी रणत भंवर में !
झुका जहाँ पर वहां वहां एक के लाख हाँथ !!
चित्तोड्दुर्ग से जीर्ण दुर्ग देते मेरे व्रत का सबूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
तुम जागीरो के गुर्गे यह शब्द कहा से आता है !
मेरे तो कानो में जब दुर्बल का रोदन जाता है !!
बस तड़फ शिराएँ उठती है मेरे दिल की तड़क तड़क !
फिर नही तोलता हानि लाभ कर्त्तव्य याद आ जाता है !!
जब मानवता के त्राण हेतु मैं रक्त बहत हूँ प्रभूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
बौखला उठा लंका सागर जब मेरे धनु पर तीर चढ़ा !
बन साधक मैने ताप किया झुक पड़ी विष्णु की गंगधारा !!
बैरी पर मेरी खडग उठी तब कांप उठी पाताल धरा !
बर्फीला काबुल पिघल गया मेरी भृकुटी थी प्रलयकार !!
बाबर के प्याले टूट पड़े बोले जय तेरी राजपूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैं महाशक्ति का ज्येष्ठ पुत्र शक्ति का सद उपयोग किया !
कब सिकंदर का बल के मद से इतराकर अनुकरण किया !!
भारत लुटा उसी वंश के गौरी को भी माफ़ किया !
दुर्बल विजितो पर कब नादिर बन मैने कत्ले आम किया !!
मैं दिव्य गुणों से ओत प्रोत में अजय वीर में देवदूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
फिर से शक्ति के मंदिर मैं नित पुष्प चढाने जाता हूँ !
निज शरीर की लोह कड़ी फौलादी करने जाता हूँ !!
वज्र कड़ी से मिला कड़ी दीप दीप से जला जला कार !
नए मार्ग से जीवन का इतिहास बनाने जाता हूँ !
कठिनाई आवे टूट पडूँगा राजपूत हूँ राजपूत !!
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैं बलिदानों का हूँ प्रतिक मैं भारत माता का सपूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैने धरती के कागज पर असिधाराओ से लिखे लेख !
मैने अम्बर को लाल किया प्राची में उषाकाल देख !!
सूर्य चन्द्र की अग्नि में पूरित हें महातेज !
में सृष्टि के अवसान काल की विकट थिरकती प्रलय रेख !!
में महा ध्वंश का प्यासा भैरव महाकाल का अग्रदूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैने ब्रह्मा की शंख ध्वनि से धर्म और संस्कृति को सिखा !
भगवन विष्णु के प्रखर चक्र से वज्र कठोरता को सिखा !!
मैने प्रलयन्कर शिव से सिखा महा विनाश का मूल मंत्र !!
दानव राहू केतु से मैने अमर मृत्यु को है सिखा !!
बालक ध्रुव से अटल साधना ऋषियों से विध्या परमपुत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मेरे जौहर और शको से यमराज यहाँ खा गए मात !
जब कभी जली शमाँ तभी निज को कर दिया भष्मसात !!
सोमनाथ खानवा और हल्दीघाटी रणत भंवर में !
झुका जहाँ पर वहां वहां एक के लाख हाँथ !!
चित्तोड्दुर्ग से जीर्ण दुर्ग देते मेरे व्रत का सबूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
तुम जागीरो के गुर्गे यह शब्द कहा से आता है !
मेरे तो कानो में जब दुर्बल का रोदन जाता है !!
बस तड़फ शिराएँ उठती है मेरे दिल की तड़क तड़क !
फिर नही तोलता हानि लाभ कर्त्तव्य याद आ जाता है !!
जब मानवता के त्राण हेतु मैं रक्त बहत हूँ प्रभूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
बौखला उठा लंका सागर जब मेरे धनु पर तीर चढ़ा !
बन साधक मैने ताप किया झुक पड़ी विष्णु की गंगधारा !!
बैरी पर मेरी खडग उठी तब कांप उठी पाताल धरा !
बर्फीला काबुल पिघल गया मेरी भृकुटी थी प्रलयकार !!
बाबर के प्याले टूट पड़े बोले जय तेरी राजपूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
मैं महाशक्ति का ज्येष्ठ पुत्र शक्ति का सद उपयोग किया !
कब सिकंदर का बल के मद से इतराकर अनुकरण किया !!
भारत लुटा उसी वंश के गौरी को भी माफ़ किया !
दुर्बल विजितो पर कब नादिर बन मैने कत्ले आम किया !!
मैं दिव्य गुणों से ओत प्रोत में अजय वीर में देवदूत !
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
फिर से शक्ति के मंदिर मैं नित पुष्प चढाने जाता हूँ !
निज शरीर की लोह कड़ी फौलादी करने जाता हूँ !!
वज्र कड़ी से मिला कड़ी दीप दीप से जला जला कार !
नए मार्ग से जीवन का इतिहास बनाने जाता हूँ !
कठिनाई आवे टूट पडूँगा राजपूत हूँ राजपूत !!
मैं राजपूत मैं राजपूत !!
1 comments:
आपकी अविता ने रामधारी सिंह दिनकर और सुभद्रा कुमार चौहान की याद दिला दी. बेहद सुन्दर प्रस्तुति.
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